नज़र नाज़ुक हैरान सर-ऐ-आम हुई है
कब सुबह हुई और कब शाम हुई है
शमा बुझ गयी परवाने जलते ही रहे
आज मय एक तनहा जाम हुई है
उम्र भर दास्ताँ कई तहों में लिखी
दो लफ़्ज़ों में ही गुफ्तगू तमाम हुई है
चाँद टपका न रात भरी आँख से सनम
लबों की ये धूप भी गुमनाम हुई है
ये मंज़र नया भी पुराना भी है
ख़ामोशी ही तूफ़ान का पैगाम हुई है
इस रंग-ऐ-महफ़िल में संभलना ए 'मिराज'
यहाँ कोरी हया भी बदनाम हुई है
6 comments:
Hi, it's a very great blog.
I could tell how much efforts you've taken on it.
Keep doing!
subhanallah kya likha hai..btw Mirage word kyu use kia hai?
Kya Khoob, Masha Allah
very well written adee...but is miraj yr upnaam??facebook pe bhi lagao ..want to share with my friends..plus i wantyr reading list!
nice one dee.....the end of these lines seems to be the beginning of a life long thought....
masha allah, aur hum kya kahein, pehle hi keh chuke hain ki aapki nazmon ke hum fan hain, humari dua hai aap isi tarah likhte rahiya :)
Regards
Harshita
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