Tuesday, February 15, 2011

सोचा ही नहीं था.

मजबूर मोहब्बत होगी खुल्द में सोचा ही नहीं था,

खुदी हम, एक बाज़ार होंगे, सोचा ही नहीं था.

हर लम्हे में तेरे, खुदी को ढूँढा क्यों हमने,

कुछ लम्हे होंगे सिर्फ तेरे, सोचा ही नहीं था.

रात खाली मिली, क्यों स्याह आफताब मिला हमें ,

जुबां खाली, इल्म स्याह होगा, सोचा ही नहीं था.

वादा तो नहीं किया था, आने का, मेरे साकी,

एक जाम मेरे नाम न होगा, सोचा ही नहीं था.

ये कैसा पहरा है चाँद पर घड़ी चलती ही नहीं,

न सहर होगी न शाम, कभी सोचा ही नहीं था.

कहते तो हैं दुनिया में सभी, किरदार हैं ‘मिराज’,

इस अफ़साने में नहीं होगा कोई, सोचा ही नहीं था.

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