Thursday, September 29, 2011
गुलाब
क्यों अपने ही घर में हम मेहमान हो गए.
मैं देखूँ मेरे जिस्म के बँटते हुए टुकड़े,
कब मज़ार बने कब महफ़िल कब दुकान हो गए.
ये कैसी है सलीब, उठाये हर कंधा है जिसे,
ये कब खुदा बने, कब मसीहा, कब शैतान हो गए.
ये हक इश्क का सांझा, ये प्रीत तुझसे क्यों मेरी,
अदब तेरा, हुनर तेरा, क्यों मेरे गुमान हो गए.
अभी तो रूह जलती है, अभी तो मौत बाकी है,
कि इस महफ़िल में साकी, सभी अन्जान हो गए.
मोहब्बत मेरी ‘मिराज’, राख, कच्चा कोयला,
पाक माहताब पर दाग खुदाई के निशान हो गए.
Tuesday, September 27, 2011
ताल्लुक !
इस यतीम रात को मैं कौन सा एक नाम दूँ,
क्या राख़ में लपेट कर,
इस पाक, कोरे चाँद को,
रख दूँ तेरी याद की, गिरह में कहीं.
या सुर्ख इस लहु से मैं ,
इस ख्वाब के इश्तिहार पर,
चंद लफ्ज़ तेरी गुफ्तगू के, मुज्तरिब, उकेरून कोई.
या बर्फाब तेरी आवाज़ को,
इस दिल के सहराओं में,
हर कुतबे पर कर सजदा मैं, खामोशियाँ ढूंढूं कहीं.
या लम्स कोई तेरी याद का,
क़दीम वक़्त की गिरफ्त से,
हयात कर रुखसारों पर, मैं रोशन तुझे करूँ यहीं…
तुझे नाम मैं न दूं कोई…
Thursday, August 04, 2011
एक गुफ़्तगू
खला मुक़द्दस है, और ख्वाब पाक़ सलीब मेरे मौला,
ये तजस्सुम भी क्या क़यामत के रोज़ तक्मील होगी…
वक़्त से कैसी शिकायत, कैसा शिक्वा मेरे मौला,
दर्द रवायत है, आह, इल्म में तब्दील होगी…
सर झुकाया है जरूर, घुटने टेके नहीं मौला,
मेरे किरदार का इम्तेहां क्या सिर्फ अन्जील होगी...
इस दामन के ये दाग भी हैं पाक मेरे मौला,
गुनाहों की फैरिस्त में सवाल, और जुस्तजू ज़लील होगी…
तू वाकिफ़ न हो मेरी रूह से ये मुमकिन नहीं मौला,
नशेमन की तलाश में बशारत शायद तहलील होगी…
मुम्किन है कुछ सब्र होगा मुझमें तेरा ‘मौला’
कुछ आतिश “मिराज” की तुझमें भी तख्मील होगी.
एक गुफ्तगू ...
खला मुक़द्दस है, और ख्वाब पाक़ सलीब मेरे मौला,
ये तजस्सुम भी क्या क़यामत के रोज़ तकमील होगी…
वक़्त से कैसी शिकायत, कैसा शिक्वा मेरे मौला,
दर्द रवायत है, आह, इल्म में तब्दील होगी…
सर झुकाया है जरूर, घुटने टेके नहीं मौला,
मेरे किरदार का इम्तेहाँ क्या सिर्फ अन्जील होगी...
इस दामन के ये दाग भी हैं पाक़ मेरे मौला,
गुनाहों की फैरिस्त में सवाल, और जुस्तजू ज़लील होगी…
तू वाकिफ़ न हो मेरी रूह से ये मुमकिन नहीं मौला,
नशेमन की तलाश में बशारत शायद तहलील होगी…
मुमकिन है कुछ सब्र होगा मुझमे तेरा ‘मौला’,
कुछ आतिश “मिराज” की तुझमे भी तख्मील होगी.
Tuesday, June 21, 2011
बहाने...
यूँ तो हमें मुस्कुराने के बहाने मिल ही जाते हैं,
इस शहर को भी चाहने के कुछ माने मिल ही जाते हैं।
क्यों फ़िक्र रुसवाई की हो, दामन छुपा के यूँ चले,
हर शक्स को भूल जाने को अफ़साने मिल ही जाते हैं।
न छेड़ो जुगनुओं को आज रात काफी हसीन है,
हर महफ़िल रोशन करने को परवाने मिल ही जाते हैं।
ये जश्न-ए-मोहब्बत देखो, जाम ख्वाइशों के नाम,
दिल और दर्द को ‘साकी’ दवाखाने मिल ही जाते हैं।
ज़मीन से फ़लक तक , तलाश बाकी है अभी,
कब्रिस्तान में हजारों को आशियाने मिल ही जाते हैं।
तावीज़ से बंधी , मिर्ची से उडी, नज़र हटाने,
ओ अहमक पुर्जे अनजाने मिल ही जाते हैं ।
कच्चे हैं ख्वाब रेत, बहते , मिलते हैं खो जाते हैं,
ये रिश्ते नाज़ुक हैं बहुत , आज़माने मिल ही जाते हैं।
खुदा नहीं जो कहता कभी, शैतैन को नामंज़ूर हुई,
वो दास्ताँ कहने वाले सनम दीवाने मिल ही जाते हैं।
दिल धड़कता नहीं ‘मिराज’, जुबां गुम सी हो गयी कहीं,
ग़ज़ल कहते हुए फिर भी यहाँ, कारखाने मिल ही जाते हैं.
Monday, April 25, 2011
यूँ ही (२)
वो क्यों आज कलम फिर पुरानी ढूँढ़ते हैं ,
वक़्त में ठहरी हुई कोई निशानी ढूँढ़ते हैं।
पैरों से तेज़ चलते इन रास्तों में क्यों,
वो मंज़िल्लों के किस्से कहानी ढूँढ़ते हैं।
नए रंग रौनक की दुनिया से जुदा,
वो ज़ख्मों में दर्द जुबानी ढूँढ़ते हैं।
कोई ग़ज़ल, कोई कता, न रुबाई की तड़प,
वो महफ़िल यूँ रुसवा बेगानी ढूँढ़ते हैं।
गोया रोशन ही न हो ये दिन और न रात,
वो दौ-पहर में शमा अन्जानी ढूँढ़ते है।
तारीख ने जो लहू से कई आयतें लिखी,
हर लफ्ज़ में वो सिफ़र बेमानी ढूँढ़ते हैं।
मिट्टी है, यादें हैं, जो यहाँ भी वहां भी,
क्यों करबला में ही वो कुर्बानी ढूँढ़ते हैं।
साँस चलती है, दिल भी धड़कता है “मिराज"
फिर कहाँ सब बेसबब जिंदगानी ढूँढ़ते हैं।
Tuesday, February 15, 2011
सोचा ही नहीं था.
मजबूर मोहब्बत होगी खुल्द में सोचा ही नहीं था,
खुदी हम, एक बाज़ार होंगे, सोचा ही नहीं था.
हर लम्हे में तेरे, खुदी को ढूँढा क्यों हमने,
कुछ लम्हे होंगे सिर्फ तेरे, सोचा ही नहीं था.
रात खाली मिली, क्यों स्याह आफताब मिला हमें ,
जुबां खाली, इल्म स्याह होगा, सोचा ही नहीं था.
वादा तो नहीं किया था, आने का, मेरे साकी,
एक जाम मेरे नाम न होगा, सोचा ही नहीं था.
ये कैसा पहरा है चाँद पर घड़ी चलती ही नहीं,
न सहर होगी न शाम, कभी सोचा ही नहीं था.
कहते तो हैं दुनिया में सभी, किरदार हैं ‘मिराज’,
इस अफ़साने में नहीं होगा कोई, सोचा ही नहीं था.
Mayfly.
Sun-kissed nights, run wild and sure mornings, shrouded in grey walk slow, noons burn high, and so do the hearts. like dawns I linger, lik...
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Dekha aaina gaur se kai baar humne, Khud se hum rubaru na hue; Tamaasha-e-yaar hua mehfil me janib, Tamaashbeen par beaabru na hue; Hamar...
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Unarticulated thoughts hanging in my mind, Quivering, squirming, Spaghetti like, Noodles like, Soft, squashy… Unarticulated expression bubbl...
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Let’s write our destinies on the leaf of desire, Let’s bring back the dead from the burning pyre. Why smear some ash, some vermillion on the...