यूँ तो हमें मुस्कुराने के बहाने मिल ही जाते हैं,
इस शहर को भी चाहने के कुछ माने मिल ही जाते हैं।
क्यों फ़िक्र रुसवाई की हो, दामन छुपा के यूँ चले,
हर शक्स को भूल जाने को अफ़साने मिल ही जाते हैं।
न छेड़ो जुगनुओं को आज रात काफी हसीन है,
हर महफ़िल रोशन करने को परवाने मिल ही जाते हैं।
ये जश्न-ए-मोहब्बत देखो, जाम ख्वाइशों के नाम,
दिल और दर्द को ‘साकी’ दवाखाने मिल ही जाते हैं।
ज़मीन से फ़लक तक , तलाश बाकी है अभी,
कब्रिस्तान में हजारों को आशियाने मिल ही जाते हैं।
तावीज़ से बंधी , मिर्ची से उडी, नज़र हटाने,
ओ अहमक पुर्जे अनजाने मिल ही जाते हैं ।
कच्चे हैं ख्वाब रेत, बहते , मिलते हैं खो जाते हैं,
ये रिश्ते नाज़ुक हैं बहुत , आज़माने मिल ही जाते हैं।
खुदा नहीं जो कहता कभी, शैतैन को नामंज़ूर हुई,
वो दास्ताँ कहने वाले सनम दीवाने मिल ही जाते हैं।
दिल धड़कता नहीं ‘मिराज’, जुबां गुम सी हो गयी कहीं,
ग़ज़ल कहते हुए फिर भी यहाँ, कारखाने मिल ही जाते हैं.