Friday, January 21, 2011
विचार 1
मगरमच्छ दिखाई देते हैं।
कल सांझ खंडहरों के पास,
गिद्दों को कहते सुना था मैंने,
कुएं का पानी नमकीन हो रहा है।
उसका स्तर भी बढ़ रहा है।
यूँ ही नहीं विलाप की आवाज़ आती मुझे।
शायद अब कुछ दिन में,
आकाश साफ़ साफ़ नज़र आने लगे...
Friday, January 14, 2011
सवाल 1
यूँ कहा कि कुछ कहा ही नहीं, ये गुफ्तगू हुई भी तो क्या हुई,
यूँ जिए की लगा हम जिए ही नहीं, ये ज़िन्दगी हुई भी तो क्या हुई.
शब् से रूठे कंदील जहाँ हम गए, शमा जली कब जल कर बुझ गयी,
ऐसे रोशन हुए कुछ दिखा ही नहीं, ये सेहर हुई भी तो क्या हुई.
न दोस्त, न दुशमन, न रिश्ता कोई, हम हैं भी और होकर भी कुछ नहीं
मेहमाँ भी नहीं, मेजबान भी नहीं, ये महफ़िल हुई भी तो क्या हुई.
कुछ जलसे हैं मेए जिसका हिस्सा नहीं, किस नीयत से चलते हैं मालूम नहीं,
तेरे सजदे में आबरू का सौदा करें, ये इबादात हुई भी तो क्या हुई.
खौफ आँखों में है, उसकी इज्ज़त नहीं, उस्ताद है वो लेकिन आलीम नहीं,
मेरे इल्म में शामिल बसीरत नहीं, ये तालीम हुई भी तो क्या हुई.
न तुक, काफिया, न ही मकसद कोई, लफ्ज़ यूँ ही पिरोये हुए हैं कई,
कोई कैसे न पूछे तुमसे ये ‘मिराज’, ये ग़ज़ल हुई भी तो क्या हुई.
Mayfly.
Sun-kissed nights, run wild and sure mornings, shrouded in grey walk slow, noons burn high, and so do the hearts. like dawns I linger, lik...
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Tonight at 1 a.m, I asked this book a question as i always do when I don't really know what should I do, rather what is right, and the r...
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Dekha aaina gaur se kai baar humne, Khud se hum rubaru na hue; Tamaasha-e-yaar hua mehfil me janib, Tamaashbeen par beaabru na hue; Hamar...
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It crawls, beneath the skin, Loosening, lumps of flesh, Burrowing deeper, And deeper, And deeper, Conquering every inch of belief, My body b...