वो क्यों आज कलम फिर पुरानी ढूँढ़ते है,
वक़्त में ठहेरी हुई कोई निशानी ढूँढ़ते हैं.
पैरों से तेज़ चलते इन रास्तों में यूँ क्यों
वो मंज़िल्लों के किस्से कहानी ढूँढ़ते हैं
नए रंग रौनक की दुनिया से जुदा
वो ज़ख्मो में दर्द जुबानी ढूँढ़ते हैं
कोई ग़ज़ल, कोई कता , न रुबाई की तड़प
वो महफ़िल यूँ रुसवा बेगानी ढूँढ़ते हैं
गोया रोशन ही न हो ये दिन और न रात
वो दो-पहर में शमा अनजानी ढूँढ़ते है
तारीख में जो लुहू से कई आयतें लिखी
हर लफ्ज़ में वो सिफर बेमानी ढूँढ़ते हैं.
मिटटी हैं, यादें हैं , जो यहाँ भी वहां भी
क्यों कर्बला में ही वो कुर्बानी ढूँढ़ते हैं
सांस चलती है, दिल भी धड़कता है “मिराज”
फिर कहाँ सब बेसबब जिंदगानी ढूँढ़ते हैं.
Tuesday, May 25, 2010
Thursday, May 20, 2010
Red, Green and Black
Here is my canvas, hung on the wall
A canopy of glass, no room no hall
The canvas splashed with reds, with greens
And shades of black stroked in between
Figures form as forms dissolve
Canvas fades as the lines evolve
I search for meanings in scattered lines
Embossed in gold and silver they shine
Straight from heaven they told they came
A multitude of hungry hands for frame
They tore apart the flesh off my frame
Devoured the colors and claimed my name
In frenzy I hacked and cut and chopped
Those hands that came to claim my mould
I drew out flesh off their fallen bones
Sew my canvas, painted till it shone
My canvas breathes, my colors swell
The forms rise up to heaven and hell
My canvas splashed with reds and greens
And shades of black wedged in between.
A canopy of glass, no room no hall
The canvas splashed with reds, with greens
And shades of black stroked in between
Figures form as forms dissolve
Canvas fades as the lines evolve
I search for meanings in scattered lines
Embossed in gold and silver they shine
Straight from heaven they told they came
A multitude of hungry hands for frame
They tore apart the flesh off my frame
Devoured the colors and claimed my name
In frenzy I hacked and cut and chopped
Those hands that came to claim my mould
I drew out flesh off their fallen bones
Sew my canvas, painted till it shone
My canvas breathes, my colors swell
The forms rise up to heaven and hell
My canvas splashed with reds and greens
And shades of black wedged in between.
Thursday, May 06, 2010
नींद टूट जाये 'मिराज' क्या सेहर लाये हो
नींद टूट जाये 'मिराज' क्या सहर लाये हो,
इस शब् में आफ़ताब क्या कहर लाये हो
फलक से कुछ दूर की ख़ामोशी चूम कर
आवाजों की ये कौन सी दोपहर लाये हो
कलम बेआबरू होती है ऐसे भी मंज़र हैं,
इस नुमाइश में ये कौन सा शहर लाये हो
दरिया से कर के बैर माझी तड़पता ही रहा
यादों के ज़लज़ले में कैसी लहर लाये हो
पानी है या कि मय है, नशा चढ़ता ही नहीं
आज जाम लाये हो या फिर ज़हर लाये हो
बंद गांठो में ही ग़ालिब नज़्म बंधी रह गयी
ये कैसी तबाही छोड़ तुम शहर आये हो
इस शब् में आफ़ताब क्या कहर लाये हो
फलक से कुछ दूर की ख़ामोशी चूम कर
आवाजों की ये कौन सी दोपहर लाये हो
कलम बेआबरू होती है ऐसे भी मंज़र हैं,
इस नुमाइश में ये कौन सा शहर लाये हो
दरिया से कर के बैर माझी तड़पता ही रहा
यादों के ज़लज़ले में कैसी लहर लाये हो
पानी है या कि मय है, नशा चढ़ता ही नहीं
आज जाम लाये हो या फिर ज़हर लाये हो
बंद गांठो में ही ग़ालिब नज़्म बंधी रह गयी
ये कैसी तबाही छोड़ तुम शहर आये हो
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